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संगीत का प्रथम रूप साधना है और साधना ही पूजा है,संगीत से देवी देवताओं को भी रिझाया जा सकता है: बब्बन विद्यार्थी

दुबहड़,बलिया। लोकगीत एवं बिरहा संगीत की वह विधा है, जो सदैव समाज को सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, या राजनीतिक संदेश देती है। संगीत का प्रथम रूप साधना है ,साधना ही पूजा है और पूजा आस्था का प्रतीक है। संगीत से देवी देवताओं को रिझाया जा सकता है। उदाहरणार्थ तुलसी, कबीर ,सूरदास, मीरा आदि भक्तों ने भजन, गीत- संगीत आदि के माध्यम से अपने आराध्य देवों को प्राप्त किया। उक्त बातें सामाजिक चिंतक एवं गीतकार बब्बन विद्यार्थी ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान व्यक्त किया। कहा कि गीतों को साहित्य, भाव, छंद, अलंकार एवं रस आदि द्वारा एक दुल्हन के सिंगर की तरह सजाया जाता है ।जिस गीत से हमारी सुरभि ना जगे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले ,हममें शक्ति और गति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागे और उसमें कोई सिख या शिक्षा न मिलती हो तो वह गीत नहीं बल्कि हमारे लिए बेकार है। कहा कि आज कलाकारों द्वारा पैसा कमाने की
होड़ के लिए जिस प्रकार लोक गीतों में अश्लीलता पड़ोसी जा रही है ,यह समाज के लिए ठीक नहीं है ।अश्लील गीत गाने वाले ऐसे गायक समाज में अधिक दिन नहीं टिक पाते।
दुबहड़ से पन्नालाल गुप्ता की रिपोर्ट–

Dainik Anmol News Team